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हंगामा है क्यों बरपा…..

लगे तो लगे
लगे तो लगे
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उत्तराखंड की स्थापना को 12 साल हो चुके और राज्य तेरहवें साल में प्रवेश कर गया है। हर टीवी चैनल और समाचार पत्र पत्रिकाओं में राज्य के उपर एक लेख लिखा गया है कि इन बारह सालों में क्या खोया क्या पाया, कितनी हुई तरक्की आदि……….लेकिन आखिर ये सब क्यों????? सब जानते हैं कि राजनीतिज्ञों का आखिर काम क्या है……दरअसल मुझे जितनी समझ है उसके मुताबिक जब भी कोई नया राज्य बनता है या उसका गठन होता है तो केंद्र सरकार के द्वारा उस राज्य को कई तरह की टैक्सों में छूट और रियायतें दी जाती है…………. साथ ही जो राज्य अलग होता है उसका अपना एक अलग महत्व होता है……….. साल 2000 में मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश से उत्तराखंड और बिहार से झारखंड को अलग कर अलग राज्य बनाया गया………तीनों राज्य जब अलग हुए तब से ही तीनों राज्यों में विद्यमान पार्टियां अपनी हसरतें पूरी करने की जुगत में जुट गई। बात की जाए झारखंड की तो इस राज्य के लिए सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात यह रही कि तमाम खनिज संसाधन होते हुए भी यहां के स्थानीय लोग जो वाकई में इस खनिज संपदा के मालिक थे वो ही आज दो जून की रोटी के लिए महरुम हैं……… बाकी इस राज्य में रह रहे आरा, बलिया और छपरा जिलों के लोगों ने खुब धन बटोरा………यहां की खनिज संपदा का खुब बंदरबांट किया गया……….जिसमें केंद्र सरकार की भी भागीदारी रही………..इस राज्य का एक और दुर्भाग्य ये कि आप खुद ही अंदाजा लगाईये कि जिस राज्य को बने बारह साल हुए हो और उस राज्य में करीब आठ मुख्यमंत्री बदले जा चुके हो उस राज्य की तस्वीर क्या होगी………जब सरकार का ही ठिकाना नही ंतो फिर उस राज्य के लोगों (आदिवासियों) का क्या????? यहां के स्थानीय नेताओं ने भी अपने खजाने भरने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी…….एनोस एक्का, मधु कोड़ा, हरिनारायण मिश्र राज्य बनने के पहले क्या थे और राज्य बनने के बाद उनकी क्या हैसियत है…….यह इस बात के प्रमाण के लिए काफी है। राज्य बनने के बाद आज भी वहां के स्थानीय लोग अपनी मांगों के लिए आये दिन धरना प्रदर्शन करते रहते हैं………..रही सही कसर इन दिनों जमीन माफियाओं ने पूरी कर रखी है……….आये दिन अखबारों के फ्रंट पेज पर फुल पेज विज्ञापन रहता है अपार्टमेंट्स का…………भला कोई बताए कि कोई आदिवासी है क्या जिसका इन बिल्डरों में नाम है………..वो तो भला हो सीएनटी एक्ट जैसे भगवान का जो………जमीन माफियाओं पर कुछ हद तक लगाम लगा पाने में कामयाब रहा……….
अब बात उत्तराखंड की…….इस राज्य का इतिहास बाकी दो अन्य राज्यों झारखंड और छत्तीसगढ़ से अलग है………क्योंकि जितना संघर्ष इस राज्य के आंदोलनकारियों को अलग राज्य के लिए करना पड़ा है उतना शायद बाकी अन्य दोनों के लिए नहीं करना पड़ा है। उत्तरखंड की बात की जाए तो यह राज्य पूरी तरह से पयर्टन और तीर्थ के नाम पर पूरे संसार में मशहुर है। यहां की 65 प्रतिशत जमीन पर वन संपदा है…….. इस राज्य की भी कुछ ऐसी परिस्थितियां है जो इस राज्य के विकास में बाधक है। राज्य बनने के बाद बारी बारी से सत्ता में आई दोनों ही बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने एक दूसरे पर जांच के नाम पर करोड़ों रुपये फूंक दिए……… और मुख्यमंत्री कहते रहे कि राज्य के पास पैसा नहीं है……….वो सचिवों और अधिकारियों को राज्य की आय बढ़ाने के लिए हर समय निर्देश देते रहते हैं……….एक बात और कि यहां की जो वन संपदा का इतना बड़ा भाग राज्य के पास है वो भी मुझे लगता है इस राज्य के विकास में बाधक है क्योंकि जमीन ना होने से और अधिकतर भाग पहाड़ी होने से आद्यौगिक विकास यहां नहीं हो पा रहा है जिससे यहां के पहाड़ों में से युवावों का पलायन लगातार जारी है। साथ ही एक प्लस प्वाइंट भी है इस राज्य के लिए जो उत्तरप्रदेश से अलग होने के बाद उत्तरप्रदेश को मुंह चिढ़ा सकती है वो है यहां की बिजली……..भले ही हालात उतने अच्छे ना हो लेकिन उत्तरप्रदेश से तो बढि़या ही है। दरअसल इस राज्य की स्थापना पलायन, पानी, पहचान आदि के लिए की गई थी साथ ही राज्य की मांग इसलिए भी की गई थी कि यह राज्य जब अलग नहीं हुआ था और उत्तरप्रदेश का एक अभिन्न अंग था तो राजधानी में बैठे मुख्यमंत्री और मंत्रियों को चारो धाम के कपाट खुलने के बाद ही यहां की याद आती थी। लेकिन आज स्थिति कुछ खास नहीं है। पहले के हालात और आज के हालत में एक परिवर्तन यह भी देखने को मिलता है कि एक पार्षद भी आसानी से मुख्यमंत्री के पास बैठकर आधे घंटे गप मार सकता है और चाय के साथ फोटो खिंचवा सकता है।
अब बात छत्तीसगढ़ की…………. यहां के बारे में मुझे कुछ खास नहीं पता लेकिन सामान्य शब्दों में और संक्षिप्त में कहना चाहूंगा कि यहां की स्थिति राजनीतिक हिसाब से ठीक है कि यहां मुख्यमंत्री ज्यादा नहीं बदलते लेकिन यहां भी मौजूद खनिज संपदा का बंदरबांट जमकर किया गया है। कुल मिलाकर देखा जाए तो जिन उद्देश्यों के लिए राज्य का गठन हुआ था उसमें कोई भी राज्य खरा नहीं उतर सका है………..इसमें कुछ दोष यहां की जनता का भी है जो ऐसी सरकारों को मौका देती है जो उनके हितों को ध्यान में ना रख अपने हितों को ध्यान में रखती है……..

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