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राजनीति का नाम ‘चिड़ियाघर’

लगे तो लगे
लगे तो लगे
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देश की वर्तमान राजनीति में इनदिनों नेताओं ने एक दूसरे पर वार करने के लिए जानवरों से तुलना करते दिख रहे है। कुछ नेता दूसरे नेता पर कीचड़ उछालने के लिए बंदर बताते है तो कोई किसी को मच्छर बताता है तो वहीं राजनीति में नया नया कदम रख रहे केजरीवाल इन सबसे कई कदम आगे रखते हुए खुद को ही डेंगू मच्छर करार दे दिया और कहा कि सभी मुझसे बच के रहे।

इस तरह के बातों के इतिहास पर एक नजर डाला जाए तो दिल्ली महिला आयोग ने गुजरात के मुख्यमंत्री को बंदर कहा। इससे पहले उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नरायण दत्त तिवारी को बूढ़ा घोड़ा, मनमोहन सिंह केा मिठ्ठू तोता, सलमान खुर्शीद को उंट, प्रियंका गांधी को मोरनी, सोनिया गांधी को मगरमच्छ, बंगाल की मुख्यमंत्री को बिल्ली, ओम प्रकाश चैटाला को बिल्ला, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री को मछली का बच्चा और लाल कृष्ण आडवाणी को बूढ़ा बैल कहकर संबोधित किया जा चुका है। और अब ताजा मामला यह है कि कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को बिदका घोड़ा कहा गया है। इन सभी बातों के अलावा नेताओं की जबान भी खुब फिसलती रहती है और उनके फिसले जुबानों पर विवादों का होना भी लाजमी है। हालांकि कभी कभी विवाद इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि माफी मांगने संबंधी स्वर भी उठते है लेकिन कभी कोई माफी मांग लेता है तो कभी कोई अपनी बातों पर अड़ जाता है। लेकिन यहां सवाल यही कि अब जैसी देश की स्थिति हो गई है उससे तो यही जाहिर होता है कि देश के तमाम पार्टियों के नेताओं ने भी समझ लिया है कि राजनीतिक पार्टियां जानवरों का महज एक समूह बनकर रह गया है। दरअसल सोचने वाली बात यह कि आखिर ये सब क्यों???? जो आरोप लगाते है वो भी तो दूध के धूले तो नहीं होते अगर ऐसा होता तो शायद ऐसा देखने सूनने और पढ़ने को ना मिलता कि एक नेता ने किसी को यह कहकर संबोधित किया। आखिर में सवाल यही कि ये कौन सा राजनीति का टाईम चल रहा है जो एक दूसरे नेता को जानवर की संज्ञा देकर पुकारा या संबोधित किया जा रहा है। मेरा मानना है कि कम से कम जानवरों को तो न बदनाम करो……. एक ऐसा समय था कि राजनीति के धूरंधरों को राष्ट्रपिता, महात्मा, लौहपुरुष, चाचाजी आदि कहकर संबोधित किया जाता था….. आज भी उन्हें इसी नाम या कहे कि उपनाम से पुकारा जाता है। लेकिन आज स्थिति कुछ और है….. नेताओं को पेंडूलम से लेकर मौनी बाबा, रावण और लहू पुरुष आदि के नाम से पुकारा जाने लगा है। इन सभी बातों से साबित होता है कि राजनेताओं का मानसिक स्तर गिरता जा रहा है और वो जनता की भलाई ना सोचकर बस एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने में ही जुटे रहते है और कोई अगर इनके खिलाफ आवाज उठाता भी है तो या तो उसे कानूनी नोटिस भेज दिया जाता है या फिर जेल में भर दिया जाता है या फिर उसका तबादला करवा दिया जाता है। आखिर उनका क्या जो संवेदनहीनता की हदें पार कर रहे हैं….. उनके उपर कौन एक्शन लेगा, उन्हें कब जेल होगी? उनका ‘तबादला’ कब होगा?????

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