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अपने आप को मर्द जात कहने में शर्म आती है…..

लगे तो लगे
लगे तो लगे
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ब्लैक संडे यानी 16 दिसंबर से लेकर सैड सटर्डे यानी 29 दिसंबर….ये 13 दिन भारत के लिए ये समय किसी विपदा से कम नहीं है… अगर विपदा नहीं होती तो…..दिल्ली में इतनी बड़ी संख्या में इस घटना के खिलाफ भीड़ इकट्ठा न होती… ये भीड़ जो पीड़िता के लिए लड़ रही थी… ये किसी के बुलावे पर नहीं बल्कि भारत में अपनी भविष्य की स्थिति को भांप कर सख्त कानून की मांग करने के लिए रायसीना हिल्स से लेकर इंडिया गेट पर पहुंची थी….लेकिन इस मुद्दे पर अभी तक सरकार कोई सख्त कदम उठाने के बजाए केवल बगले ही झांक रही है…और अब जब पीड़िता दुनिया से रुखस्त हो चुकी है तो पीड़िता के लिए शोक संवेदना व्यक्त कर रही है… जैसे ही पीड़िता की मौत की खबर भारत पहुंची….हाई अलर्ट कर दिया गया…काश की ऐसे ही सरकार और आम जनमानस हर समय अलर्ट रहती…उस नारी के लिए जिसे भारत में देवी समान पूजा जाता है…उस किशोरी के लिए जिसे नवरात्रों पर देवी मानकर भोजन कराया जाता है…..हांलाकि दामिनि हमारे इस बुरे और नर्क जैसे समाज को छोड़कर हमसे दूर जा चुकी है….दामिनि ही क्यूं ना जाने इससे पहले कितनी दामिनि जा चुकी हैं और हम समय रहते न चेते तो न जाने कितनी और दामिनि हमें छोड़कर जा सकती है….उनमें हमारी और आपकी दामिनि भी हो सकती है…. इस पूरे शर्मनाक घटना ने हमें सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर इसका अंजाम क्या होने वाला है… खबर थी कि घटना के बाद पीड़िता ने होश में आते ही पहला सवाल किया था कि क्या दोषी पकड़े गए…… जब उसे पता चला कि वे  पकड़े जा चुके हैं तो पीड़िता ने अपनी मां से कहा था कि उन्हें फांसी दी जानी चाहिए…. यानी पीड़िता की आखिरी इच्छा थी कि उसके साथ दुष्कर्म करने वालों को मौत की सजा मिले….. लेकिन दोषियों को अभी तक सजा नहीं मिली है…और सरकार सोच रही है कि आखिर क्या और कैसे सजा दी जाए…. खैर सरकार का सोचना जायज है…और सरकार इस मामले पर सोचे भी….लेकिन सजा भी ऐसी होनी चाहिए कि….इस तरह के कुकृत्य करने से पहले अपराधी दस नहीं बल्कि दस लाख बार सोचे….. आखिर किसी की जान गई है…. दिल्ली में जब इस जघन्य अपराध के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया जा रहा था तो किसी बच्ची ने एक तख्ती पर लिखा था कि लड़की तुम्हारे बाप की जागीर नहीं….वाकई में वो किसी के बाप की जागीर नहीं है…आखिर उन्हें भी आजादी चाहिए…. इससे बेहतर तो विदेशी हुकुमत थी कम से कम काले पानी की सजा तो थी…. मुझे लगता है हमारे क्रांतिकारियों के बलिदान भी व्यर्थ जा रहे हैं….. अगर आज वो होते तो देश आजाद कराने में उन्हें भी शर्म आती कि इसलिए देश आजाद कराया था….. जो हुआ और जो हो रहा है ये किसी इमरजेंसी से कम नहीं है….बलात्कारियों ने ऐसा काम किया है कि मर्द जात कहने में अपने आप को शर्म आती है….

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